न्यारा कर दो दुनिया वालों
अब निभे ना संग तुम्हारे।
बंगले, मोटर-कार ना लूँगा
टी.वी. विडियो सब छोडूँगा।
ये बिस्तर-गद्दे, ए.सी. कमरे
कभी ना देखूँ इनके सपने।
धन-दौलत से मुझे क्या करना
यह सब भी तुम ही रख लेना।
कामिक्स पढ-पढ़ मन है ऊबा
अब तो चाहूँ मुक्त गगन में उड़ना।
परी-देश की सैर को जाऊँ
संग वहां से ढेरों तितलियां लाऊँ।
बालू रेत का घर बनाकर
मेघों के गद्दे बिछवाऊँ।
रिमझिम में मैं नाचूँ-गाऊँ
कोयल संग मैं सुर मिलाऊँ।
दिन-भर खेलूँ पतंग उड़ाऊँ
फिर बगिया के फूलों में सो जाऊँ।
जो लोग अपना सारा बचपना बचपन में ही खर्च कर देते हैं वे अक्सर जवानी में जिंदगी खोया करते हैं और बुढ़ापे में जिंदगी ढोया करते हैं। जो लोग ताउम्र अपना बचपन बचाये रखते हैं केवल वही पूरी जिंदगी जी पाते हैं।
Labels
- *********************** (1)
- अंतर्नाद (1)
- अला-बला (2)
- कविता (7)
- कहानी (1)
- गीत (1)
- चुहलबाजी (1)
- पहेली (1)
- बाल कथा (1)
- विचार प्रवाह (1)
Tuesday 4 June 2013
न्यारा कर दो दुनिया वालों
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment