Wednesday 18 March 2015

नॉनस्टॉप-बचपन

ओए चल ना
खिली-खिली धूप में
छत पर बैठेंगे।
आसान में उड़ते
कबूतर को देखकर
सपने बुनेंगे।
रंग अगर चुक गए
तितली से ले लेंगे।

चल, सौंधी-सौंधी हवाओं में
मेंढ़ पर बैठेंगे।
खेत से तोड़कर
गन्ना चुसते
बातें घडेंगे।
आ,गन्ने की जड़ उछालकर
बेर तोड़ेंगे।

चल, हाथों में हाथ लेकर
खेतों में घूमेंगे।
नाली में चलते
ट्यूबवेल के पानी में
छपाछप खेलेंगे।
आजा,फूलों पर मँडराती
तितलियाँ पकड़ेंगे।

चल, मटर के खेत से
तोड़ फलियाँ खाएँगें।
चने की पत्तियों से
नरम-नरम डोडियों से
नमक चुराएँगे।
आ ना, मूली-शलगम उखाड़कर
चबा-चबाकर खाएँगें।

चल, पुआल की झोंपड़ी में
गुड़-रोटी खाएँगें।
दुम हिलाते टॉमी को
म्याऊँ-म्याऊँ बिल्ली को
छाछ पिलाएँगे।
आजा, मीठे पके गूलर से
जायका बढाएंगे।

चल, आम की ड़ाली पे
कोयल बनके कुहूकेंगें।
खेत के पानी में
बगुलों को देखकर
तालियाँ बजाएँगे।
आ, शीशम के नीचे से
मोरपंख खोजकर लाएँगें।

चल, लाल-लाल टेशू
झोली भर लाएँगें।
करौंदे के पेड़ से
सुनहरे-लाल-गुलाबी
करौंदे चुनकर लाएँगें।
आजा, ढाके के पत्ते में
पानी पियेंगे।

चल, टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी पर
दौड़ लगाएँगे।
धूल के गुब्बार में
ऊँची उड़ती घास-पात में
सहम के बैठ जाएँगें।
आ, खेत में घुसी घसियारिन को
ढेला मार ड़राएँगें।

चल, आसमान में उड़ती
चील की परछाईं पकड़ेंगे।
भैंस के रैंकने की
दादा के खाँसने की
नकल बनाएँगें।
आजा, गैया के बछड़े से
दौड़ लगवाएँगें।

चल, भैंस की पूँछ पकड़ कर
तालाब पार लगाएँगे।
बचके माँ की झिड़की से
दादी की गोद में
जाके छुप जाएँगें।
आजा, भैया की कॉपी में
कबूतर बनाएँगें।

चल, बुलबुल के पास
मुँडेर पर बैठेंगे।
दीदी के झोले से
लंबा धागा लाकर
पतंग उड़ाएँगें।
वो देख कटी पतंग
आजा लूटकर लाएँगें।

चल, छुपकर-ढूँढकर
चोर-सिपाई खेलेंगें।
नीम तले चौपाल पर
सबको बुलाकर
हल्ला मचाएँगें।
थक गए अब बहुत
दादी कहानी सुनाओ ना........ नॉनस्टॉप