Monday 24 October 2016

दीपावली की कहानी

आओ बच्चों तुम्हें सुनाऊँ
दीपावली की अमर कहानी।
सुनकर तुम ये मत कहना
यह तो भैया बहुत पुरानी।
दीपावली आती हर वर्ष नयी
नित नई है उसकी यह कहानी।

अयोध्या के थे राजा राम
वन में जाकर रहते थे।
संग सीता और लक्ष्मण भ्राता
वचन पिता का भरते थे।

लंका का था राजा रावण
था वह बडा वीर-अभिमानी।
स्वर्ग लोक के देवता सारे
महल में उसके भरते थे पानी।

एक दिवस की बात यह
पाकर वन में सिया अकेली।
छल से बिठा निज रथ में
ले गया मूर्ख-अज्ञानी।

क्रोध भड़क उठा राम-लखण का
बात जब उन्होंने सब जानी।
खींची डोर निज धनुषों की
रावण से लोहा लेने की ठानी।

राम-लखन दोऊ भ्राता
रावण की सेना अनजानी।
महावीर हनुमान मिले तब
सुग्रीव ने भी सहायता करने की मानी।

सुग्रीव था किष्कंधा का राजा
वानर सेना थी उसकी अति भारी।
नल-नील-अंगद-जाम्बवंत
योद्धा थे उसके बड़े बलवानी।

बात-बात में बना पुल सागर पर
हुई रावण को तब हैरानी।
समझाया उसको खूब सभी ने
पर बात ना उसने झुकने की मानी।

मचा घमाशान कई दिनों तक
मिटे योद्धा अनगिण बलिदानी।
मेघनाद-कुम्भकरण ने भी तो
खूब की वानर सेना की हानि।

पर राम-लक्ष्मण के बाणों ने
उनको भी गति दे डाली।
तब निकला किले से राजा-रावण
था वह खूब दंभी-अभिमानी।

राम-रावण संग्राम छिड़ा तब
तीनों लोक में थी लाचारी।
धरती कांपती अंबर डोलता
चलते थे जब उनके वज्र भारी।

एक बाण बडा पैना
जाकर लगा रावण की नाभि में।
मूर्छित होकर गिरा धूलि में
हुआ तत्काल राम को प्यारा।

थी वह तिथि दशमी की
जब वह महाबली दशानन हारा।
इसीलिए तो हमने तब से
इसे दशहरा के रूप में जाना।

चौदह वर्ष का वनवास निबाह तब
राम-लखन-सिया अयोध्या आये।
उनके स्वागत में ही तो
उस दिन थे सबने दीप जलाये।

राम-लखन और भरत-शत्रुघन
प्रजा वसियों ने गले लगाये।
थी कार्तिक आमावश्या उस दिन
जिसको अब हम दीपावली मनाऐं।

दीपावली है त्यौहार प्रेम का
त्याग- तपस्या और बलिदान का।
मंत्र जरा यह अपनाकर देखो
दीपावली होगा हर दिन जीवन का।

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