फिर आया त्यौहारों का मौसम
लेकर खुशियां ढेर रंगारंग
पहले तीज़ ने धूम मचाई
घेवर, फेनी, गुँजिया उड़ाईं
राखी लेकर दीदी आई
उसने भी मुँह में ठूँसी मिठाई
जन्माष्टमी का भी मज़ा निराला
दिन भर मुँह में डाला ताला
चंदा मामा देर से आए
लेकिन तब ही लिया निवाला
दशहरा की तो बात ना पूछो
मेघनाद मारा, कुम्भकर्ण मारा
रावण की भी धज्जियां उडाईं
दिन भर खेले मौज़ मनाई
उस पर भी हमको मिली मिठाई
यह लो भैया आई दिवाली
रंगबिरंगी है मतवाली
घर-आँगन सब करो सफाई
रिमझिम को अब दो विदाई
दिन छिपते ही दीप जलाएं
दुशमन-दोस्त सब गले लगाएं
भैया ने फिर फुलझड़ी जलाई
हम सबने फिर खाई मिठाई।
:) :) :) :) :) :) :) :)
जो लोग अपना सारा बचपना बचपन में ही खर्च कर देते हैं वे अक्सर जवानी में जिंदगी खोया करते हैं और बुढ़ापे में जिंदगी ढोया करते हैं। जो लोग ताउम्र अपना बचपन बचाये रखते हैं केवल वही पूरी जिंदगी जी पाते हैं।
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Tuesday 20 August 2013
फिर आया त्यौहारों का मौसम
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भैया ने फिर फुलझड़ी जलाई
ReplyDeleteहम सबने फिर खाई मिठाई।
............ओह, क्या बात है।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
आभार और धन्यवाद भी ब्लाॅग पर दृष्टि डालने के लिए, संजय भास्कर जी!
ReplyDeleteतीज ले आई सब त्योहार... ,
ReplyDeleteकोमल रचना!