कितना अच्छा लगता है
जब मैं आज तिरंगा हूँ
नभ गंगा सा निर्मल है
मैं लहराता गौरी का पल्लू हूँ।
सीना चौड़ा हो जाता है
जब संग शहीद चिता पर चढता हूँ
मस्तक ऊँचा हो जाता है
जब हिम शिखरों पर लहराता हूँ।
जनम सुफल हो जाता मेरा
गर लाज़ बहन की बनता हूँ
दिल खून के आँसू रोता है
जब कफन बगुले का बनता हूँ।
बहुत बुरा लगता है सच
जब झूठ की डोरी बँधता हूँ
दिल ज़ार-ज़ार बस रोता है
जब सलामी दुष्टों की लेता हूँ।
मुझको चिथड़े कर देना, वीरों
गद्दारों के आगे मत झुकने देना
खून से तुम्हारे लथपथ जाऊँ
मत छींटे उनके पड़ने देना।
भारत माँ की शान हूँ मैं
भारत माँ की आन हूँ मैं
बस इतनी विनती करता हूँ
गर खून रगों में हो बाकि
गर आग जिगर में हो बाकि
गर फर्ज वतन का हो बाकि
गर कर्ज दूध का हो बाकि
गर हया आँख में हो बाकि
बस माँ की लाज़ बचा लेना
मुझको गिद्धों से छुड़ा लेना।
कुछ ओर नहीं, कुछ ओर नहीं
मैं ताज़ तुम्हारे सर का हूँ
कितना अच्छा लगता है
जब मैं आज तिरंगा हूँ...
***
जो लोग अपना सारा बचपना बचपन में ही खर्च कर देते हैं वे अक्सर जवानी में जिंदगी खोया करते हैं और बुढ़ापे में जिंदगी ढोया करते हैं। जो लोग ताउम्र अपना बचपन बचाये रखते हैं केवल वही पूरी जिंदगी जी पाते हैं।
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Thursday, 15 August 2013
कितना अच्छा लगता है
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कविता
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अच्छा है।
ReplyDeleteधन्यवाद, सर जी!
ReplyDeleteबहुत कुछ कह गया यह गीत
ReplyDeleteसटीक !
रचना के भाव तक पहुँचने के लिए आपका शुक्रिया जी!
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