जो लोग अपना सारा बचपना बचपन में ही खर्च कर देते हैं वे अक्सर जवानी में जिंदगी खोया करते हैं और बुढ़ापे में जिंदगी ढोया करते हैं। जो लोग ताउम्र अपना बचपन बचाये रखते हैं केवल वही पूरी जिंदगी जी पाते हैं।
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Monday, 26 August 2013
1.चाँद निकला था रात सितारों में मगर,
हम उनकी गली में नज़र लगाये बैठे ही रहे।
दीदार-ए-शमां हुआ ही नहीं,
हम ज़ाम-ए-मौहब्बत लिए बैठे ही रहे।
2. रातें भी होंगी मुलाकातें भी होंगीं
मगर जो बात आज है वो फिर कहां होगी।
3.1
आइने यूँ ही बदनाम हुआ करते
आइनों की नजरों में ना कभी चोर हुआ करते हैं
जब अपनी ही आँखों से ना दिखे सच
आइने बड़े मददगार हुआ करते है
हमको मालूम होता पहले अगर
आइने में उनको देखकर,गज़ल बन जाएगी
शीशमहल ही लाकर दे देते
अब, अब तो रहते हैं वो हर पल नजरों के सामने
बीच में आइना भला कैसे खड़ा कर लें।
......(डा. अरविंद मिश्रा सर के एक फेसबुक फोटो पर)
Tuesday, 20 August 2013
फिर आया त्यौहारों का मौसम
फिर आया त्यौहारों का मौसम
लेकर खुशियां ढेर रंगारंग
पहले तीज़ ने धूम मचाई
घेवर, फेनी, गुँजिया उड़ाईं
राखी लेकर दीदी आई
उसने भी मुँह में ठूँसी मिठाई
जन्माष्टमी का भी मज़ा निराला
दिन भर मुँह में डाला ताला
चंदा मामा देर से आए
लेकिन तब ही लिया निवाला
दशहरा की तो बात ना पूछो
मेघनाद मारा, कुम्भकर्ण मारा
रावण की भी धज्जियां उडाईं
दिन भर खेले मौज़ मनाई
उस पर भी हमको मिली मिठाई
यह लो भैया आई दिवाली
रंगबिरंगी है मतवाली
घर-आँगन सब करो सफाई
रिमझिम को अब दो विदाई
दिन छिपते ही दीप जलाएं
दुशमन-दोस्त सब गले लगाएं
भैया ने फिर फुलझड़ी जलाई
हम सबने फिर खाई मिठाई।
:) :) :) :) :) :) :) :)
Thursday, 15 August 2013
कितना अच्छा लगता है
कितना अच्छा लगता है
जब मैं आज तिरंगा हूँ
नभ गंगा सा निर्मल है
मैं लहराता गौरी का पल्लू हूँ।
सीना चौड़ा हो जाता है
जब संग शहीद चिता पर चढता हूँ
मस्तक ऊँचा हो जाता है
जब हिम शिखरों पर लहराता हूँ।
जनम सुफल हो जाता मेरा
गर लाज़ बहन की बनता हूँ
दिल खून के आँसू रोता है
जब कफन बगुले का बनता हूँ।
बहुत बुरा लगता है सच
जब झूठ की डोरी बँधता हूँ
दिल ज़ार-ज़ार बस रोता है
जब सलामी दुष्टों की लेता हूँ।
मुझको चिथड़े कर देना, वीरों
गद्दारों के आगे मत झुकने देना
खून से तुम्हारे लथपथ जाऊँ
मत छींटे उनके पड़ने देना।
भारत माँ की शान हूँ मैं
भारत माँ की आन हूँ मैं
बस इतनी विनती करता हूँ
गर खून रगों में हो बाकि
गर आग जिगर में हो बाकि
गर फर्ज वतन का हो बाकि
गर कर्ज दूध का हो बाकि
गर हया आँख में हो बाकि
बस माँ की लाज़ बचा लेना
मुझको गिद्धों से छुड़ा लेना।
कुछ ओर नहीं, कुछ ओर नहीं
मैं ताज़ तुम्हारे सर का हूँ
कितना अच्छा लगता है
जब मैं आज तिरंगा हूँ...
***